Thursday, September 25, 2014

जानिए, बैंक कैसे तय करते हैं कि किसे और कितना देना चाहिए होम लोन

नई दिल्ली. घर खरीदने में होम लोन की भूमिका अहम होती है। हर किसी को होम लोन लेने से पहले उलझन, परेशानी और जानकारी की कमी से जूझना होता है। आम तौर पर सभी खरीददारों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर उसको कितना होम लोन मिल सकता है? होम लोन लेने के लिए पात्रता क्‍या होगी?
 
बैंक कैसे तय करते हैं कि किसे देना चाहिए होम लोन
 
बैंक लोन देने से पहले आपके बैंकिंग रिकार्ड को देखते हैं। इसके लिए वह आपके सिबिल क्रेडिट स्‍कोर को पैमाना मानते हैं। सिबिल क्रेडिट स्‍कोर आपके द्वारा लिए गए लोन, बैंक में जमा रकम और लोन को समय पर अदा करने से बेहतर बनता है।
 
होम लोन के लिए इन बातों पर ध्यान देते हैं बैंक
 
बैंक होम लोन देने से पहले कर्ज लेने के इच्छुक व्यक्ति का पेशा, उसकी कंपनी की प्रोफाइल, रिटायरमेंट की उम्र, उम्र, लोन चुकाने की क्षमता और मौजूदा आय देखता है। साथ में वह यह भी देखता है कि ईएमआई देने के साथ आप अच्छी जीवनशैली बरकरार रख पाएंगे या नहीं। इन सभी के हिसाब से ही बैंक आपको होम लोन देते हैं।
होम लोन की अवधि 
 
जहां तक उम्र की बात है तो बैंकों ने होम लोन देने के लिए कोई उम्र सीमा तय नहीं कर रखी है। हालांकि, बदलते दौर के साथ होम लोन लेने वाले लोगों में अधिकांश संख्या युवा लोगों की है। होम लोन अमूमन 15 से 20 साल के लिए होता है। हमेशा यह ध्‍यान रखना चाहिए कि होम लोन की ईएमआई नौकरी में रहते हुए ही खत्‍म हो जाए। जानकारों का मानना है कि आप अपनी सैलरी का अधिकतम 30 से 35 फीसदी तक ईएमआई के रूप में अदा कर सकते हैं। इससे अधिक ईएमआई का बोझ आपकी वित्तीय स्थिति को खराब कर सकता है।
होम लोन लौटाने का सही तरीका
 
आज के दौर में युवाओं में नौकरी को लेकर प्राय: निश्‍चितता होती है। ऐसे में लोन लेने के समय ही वापसी की क्षमता का आकलन कर ही लोन लेना चाहिए। यदि कर्जदाता को लगता है कि यदि भविष्‍य में उसकी सैलरी बढ़ेगी, तो उसको स्‍टेप-अप रीपेमेंट सुविधा का लाभ लेना चाहिए। इसके अंतर्गत होम लोन पर शुरूआती ईएमआई कम होती है और बाद में बढ़ती चली जाती है। यदि आपके पास किसी अन्‍य स्रोत से पैसा आता है तो आप प्री-पेमेंट जैसी सुविधाओं का लाभ लेकर थोड़ी-थोड़ी रकम चुका सकते हैं।
 
अगर आपने होम लोन ले रखा है, तो अक्सर आपके दिमाग में यह बात आती रहती होगी कि कैसे इसे जल्द से जल्द खत्म किया जाए। दरअसल होम लोन जल्द खत्म करने का फायदा यह होता है कि आपको ब्याज के मोर्चे पर बचत हो जाती है। अगर आप ऐसा करना चाहते हैं, तो इसके कई तरीके हो सकते हैं। आप चाहें तो आप अपना लोन किसी ऐसे बैंक के पास स्विच कर दें, जिसकी ब्याज दर कम हो। इसके अलावा आप चाहें तो आंशिक रूप से प्रीपेमेंट कर दें। इसका एक तरीका यह भी हो सकता है कि आप अपने लोन की ईएमआई बढ़वा लें, ताकि होम लोन कम वक्त में खत्म हो जाए।
 
1- ईएमआई बढ़वा लें

इसके अलावा आप चाहें तो अपनी ईएमआई भी बढ़वा सकते हैं। आप जब चाहें, तब ऐसा कर सकते हैं। इसके लिए बैंक आपसे कोई शुल्क नहीं लेता। ईएमआई बढ़ाने का फायदा यह होगा कि आपका होम लोन तय अवधि से पहले खत्म हो जाएगा।
 
 2- कम ब्याज दरों पर स्विच करें

दरअसल पिछले दिनों कुछ बैंकों ने होम लोन पर अपनी ब्याज दरें घटाई हैं। ऐसे में आपके पास होम लोन स्विच करने का अच्छा मौका है। आईसीआईसीआई बैंक ने पांच करोड़ रुपए तक के सभी फ्लोटिंग रेट होम लोन 10.15 फीसदी ब्याज पर देने की बात कही है। यह सुविधा केवल सैलरीड (वेतनभोगी) लोगों के लिए होगी। एचडीएफसी ने नए ग्राहकों के लिए होम लोन पर ब्याज दर घटा कर 10.15 फीसदी कर दी है। एक अगस्त 2014 से लागू यह योजना सैलरीड और सेल्फ इम्प्लॉयड दोनों ही तरह के ग्राहकों के लिए है।

अगर आपके मौजूदा लोन पर ब्याज दर इसके मुकाबले 0.50 बेसिस प्वाइंट्स से अधिक हो, तो आप होम लोन स्विच करने के बारे में सोच सकते हैं। स्विच करने के बाद अगर आप उतनी ही ईएमआई दें, जितनी पहले बैंक को देते थे, तो ऐसी स्थिति में आपका होम लोन तय अवधि से पहले ही खत्म हो जाएगा। 
 
 3- आंशिक रूप से प्रीपेमेंट

होम लोन को जल्दी खत्म करने का तरीका यह भी है कि आंशिक रूप से प्रीपेमेंट कर दिया जाए। इसके लिए आप ऐसी पूंजी का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिसकी आपको हाल-फिलहाल जरूरत न हो और जिस पर हाउसिंग लोन पर लग रहे ब्याज से कम रिटर्न हासिल हो रहा है। ऐसा करने के बाद तय वधि से पहले ही होम लोन चुकता हो जाएगा। आरबीआई और नेशनल हाउसिंग बैंक की ओर से जारी नोटिफिकेशंस के बाद प्रीपेमेंट करने पर कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लगता।

Tuesday, September 23, 2014

16 अक्टूबर से मिलेंगे यूनिवर्सल अकाउंट नंबर

नई दिल्ली। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन [ईपीएफओ] के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के तहत आने वाले सभी कर्मचारियों को यूनिवर्सल पीएफ अकाउंट नंबर [यूएएन] 16 अक्टूबर से मिलने लगेगा। इस क्षेत्र में और पादर्शिता लाने के उद्देश्य से सरकार श्रम मंत्रालय के तहत वेब पोर्टल के माध्यम से लेबर आइडेंटिफिकेशन नंबर [एलआइएन] की शुरुआत भी करने जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दोनों योजनाओं की का उद्घाटन 16 अक्टूबर को करेंगे। इसकी शुरुआत से पहले ही श्रम सचिव ने शनिवार को अपने आला अधिकारियों की एक बैठक भी बुलाई थी जिसमें एलआइएन और यूएएन योजनाओं की शुरुआत एक ही दिन करने की बात कही गई थी। श्रम सचिव के मुताबिक इन दोनों योजनाओं के शुभारंभ के लिए प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया गया है। इस उद्घाटन समारोह में श्रम मंत्री समेत कई आला अधिकारी भी शामिल होंगे।
यूनिवर्सल अकाउंट नंबर [यूएएन] मिलने के बाद कर्मचारी न सिर्फ अपने पीएफ अकाउंट के बारे में जान सकेगा बल्कि उसको डाउनलोड भी कर सकेगा। इसके अलावा नौकरी बदलने के बाद अब पीएफ को ट्रांसफर या फिर बदलवाने के झंझट से भी मुक्ति मिल जाएगी।
एलआइएन वेब पोर्टल पर अपना ब्यौरा देखने के लिए कर्मी को एलआइएन [श्रम पहचान संख्या] डालनी होगी। इसके तहत वह हर माह या समय समय पर होने वाली अपडेशन को देख सकेगा। इसके अलावा मंत्रालय सभी कर्मियों से संबंधित सभी परेशानियों का निपटारा भी ऑनलाइन सिस्टम के तहत करेगा।http://www.jagran.com

पंजाब के लोगों को बड़ी राहत, छोटे प्‍लॉट पर नहीं देना होगा प्रॉपर्टी टैक्‍स

चंडीगढ़। पंजाब कैबिनेट ने मंगलवार को एक महत्‍वपूर्ण निर्णय लेते हुए राज्‍य के लोगों को जमीन और बिल्‍डिंग के प्रॉपर्टी टैक्‍स में बड़ी राहत दी है। सरकार ने छोटे प्‍लॉट और इन पर बने मकानों को प्रॉपर्टी टैक्‍स की सीमा से बाहर कर दिया है।
साथ ही अवैध इमारतों और कॉलोनियों को वैधता प्रदान करने के लिए 1 साल का वक्‍त और दिया है। मुख्‍यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की अध्‍यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक के एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण निर्णय में सरकार ने राज्‍य में ऑनलाइन लॉटरी को भी मंजूरी प्रदान कर दी है। सरकार ने मेडिसिटी में प्‍लॉट आवंटन की नीति को भी मंजूरी दे दी है।
पंजाब कैबिनेट के प्रॉपर्टी टैक्‍स संबंधी निर्णय
  • पंजाब कैबिनेट ने पंजाब म्‍युनिसिपल एक्‍ट 1911 और पंजाब म्‍युनिसिपल कॉरपोरेशन एक्‍ट 1976 में संशोधन को मंजूरी दे दी है।
  • शहरी क्षेत्रों में प्रॉपर्टी टैक्‍स के निर्धारण को लेकर स्‍थानीय प्रशासन मंत्री की अध्‍यक्षता में बनाई गई कमेटी की सिफारिश को मंजूरी मिल गई है।
  • कमेटी की सिफारिश पर सरकार ने पंजाब की म्‍युनिसिपिलिटी को तीन श्रेणियों(A, B, C) में बांटा गया है। ए श्रे‍णी को तीन भाग में और बी तथा सी को दो अन्‍य भाग में विभाजित किया गया है।
  • धार्मिक स्‍थल, शवदाह गृह, एतिहासिक जमीन, वृद्धाश्रम और अनाथाश्रम, सरकारी स्‍कूल, सरकारी अस्‍पताल, कृषि भूमि का प्रॉपर्टी टैक्‍स से मुक्‍त रखा गया है।
  • विधवाओं और विकलांगों को प्रॉपर्टी टैक्‍स में 5000 रुपये तक की छूट मिलेगी। इसके साथ ही स्‍वतंत्रता सेनानी, बीपीएल परिवार, भूतपूर्व सैनिकों और शैक्षिणिक संस्‍थाओं को प्रापर्टी टैक्‍स में 50 फीसदी राहत प्रदान की गई है।
  • खाली पड़े प्‍लॉट, 50 स्‍क्‍वायर यार्ड से मल्‍टी स्‍टोरी मकानों पर कोई भी टैक्‍स नहीं लगाया जाएगा।
  • 125 स्‍क्‍वायर यार्ड तक जमीन पर बने सिंगल स्‍टोरी मकान और  500 स्‍क्‍वायर फीट सुपर कवर्ड एरिया में बने मकान पर भी टैक्‍स नहीं लगेगा।
  • नॉन रेजीडेंशियल रेंटेड बिल्डिंग के वार्षिक किराए पर 7.50 फीसदी टैक्‍स लगाया जाएगा।
  • 1 अप्रैल 2014 तक तीन वर्ष पूरा नहीं करने वाली और इसके बाद स्‍थापित नगर पंचायत को अगले तीन साल तक प्रॉपर्टी टैक्‍स से मुक्‍त रखा जाएगा।
  • कैबिनेट ने प्रदेश की अवैध कॉलोनियों, प्‍लॉट और बिल्डिंग को वैध करने के लिए रेगुलराइजेशन की पॉलिसी को अगले एक साल के लिए और बढ़ा दिया है।

पैन कार्ड पर लिखे कोड में होती आपकी जानकारी

नई दिल्ली. पैन कार्ड एक ऐसा डॉक्युमेंट है, जिसकी जरूरत दैनिक उपयोग के कई आवश्यक कार्यों में पड़ती है। इनकम टैक्स रिटर्न भरने में भी पैन नंबर जरूरी होता है। तत्काल टिकट में भी आईडी प्रूफ की आवश्यकता होती है, जिसमें अधिकांश लोग पैन नंबर देना ही जरूरी समझते हैं।
क्या कभी सोचा है कि आखिर पर्मानेंट एड्रेस नंबर, यानी पैन नंबर में ऐसा क्या छिपा है, जो आपके और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के लिए जरूरी है। चलिए हम आपको पैन कार्ड और पैन नंबर से जुड़ी पूरी जानकारी देंगे। हम यह भी बताएंगे कि पैन कार्ड पर मौजूद नंबर का क्या मतलब होता है।
आइए जानते हैं पैन कार्ड में दिए गए हर नंबर का क्या होता है मतलब-
पैन कार्ड नंबर एक 10 डिजिट का खास नंबर होता है, जो लेमिनेटेड कार्ड के रूप में आता है। इसे इनकम टैक्स डिपार्टमेंट वाले उन लोगों को इश्यू करते हैं, जो पैन कार्ड के लिए अर्जी देते हैं। पैन कार्ड बन जाने के बाद उस व्यक्ति के सारे फाइनेंशियल ट्रान्जैक्शन डिपार्टमेंट के पैन कार्ड से लिंक हो जाते हैं। इनमें टैक्स पेमेंट, क्रेडिट कार्ड जैसे कई फाइनेंशियल लेन-देन डिपार्टमेंट की निगरानी में रहते हैं।
इस नंबर के पहले तीन डिजिट अंग्रेजी के लेटर्स होते हैं। यह AAA से लेकर ZZZ तक कोई भी लेटर हो सकता है। ताजा चल रही सीरीज के हिसाब से यह तय किया जाता है। यह नंबर डिपार्टमेंट अपने हिसाब से तय करता है।
पैन कार्ड नंबर का चौथा डिजिट भी अंग्रेजी का ही एक लेटर होता है। यह पैन कार्डधारी का स्टेटस बताता है। इसमें-
P- एकल व्यक्ति
F- फर्म
C- कंपनी
A- AOP ( असोसिएशन ऑफ पर्सन)
T- ट्रस्ट
H- HUF (हिन्दू अनडिवाइडिड फैमिली)
B-BOI (बॉडी ऑफ इंडिविजुअल)
L- लोकल
J- आर्टिफिशियल जुडिशियल पर्सन
G- गवर्नमेंट के लिए होता है
पैन कार्ड नंबर का पांचवा डिजिट भी ऐसा ही एक अंग्रेजी का लेटर होता है। यह लेटर पैन कार्डधारक के सरनेम का पहला अक्षर होता है। यह सिर्फ धारक पर निर्भर करता है। गौरतलब है कि इसमें सिर्फ धारक का लास्ट नेम ही देखा जाता है।
इसके बाद पैन कार्ड में 4 नंबर होते हैं। यह नंबर 0001 से लेकर 9999 तक, कोई भी हो सकते हैं। आपके पैन कार्ड के ये नंबर उस सीरीज को दर्शाते हैं, जो मौजूदा समय में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में चल रही होती है। इसका आखिरी डिजिट एक अल्फाबेट चेक डिजिट होता है, जो कोई भी लेटर हो सकता है।
कहां-कहां है पैन कार्ड जरूरी
पैन कार्ड की मदद से आपको विभिन्न वित्तीय लेन-देन में आसानी होती है। इसकी मदद से आप बैंक खाता और डीमैट खाता खोल सकते हैं। इसके अलावा प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त के लिए भी यह जरूरी होता है। दरअसल, पैन कार्ड टैक्सेबल सैलरी या प्रोफेशनल फी हासिल करने के लिए भी आवश्यक है। यह इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए भी जरूरी है।
चूंकि पैन कार्ड पर नाम और फोटोग्राफ होता है, ऐसे में यह आइडेंटिटी प्रूफ के तौर पर काम करता है। भले ही आपका पता बदलता रहे, लेकिन पैन नंबर नहीं बदलता।
ऊंची दर पर टैक्स डिडक्शन से बचने के लिए पैन कार्ड जरूरी है। दरअसल, जब आप 50 हजार रुपए से अधिक राशि की एफडी शुरू करते हैं, तो पैन कार्ड की फोटोकॉपी देनी होती है। पैन के अभाव में ऊंची दर पर आपका टीडीएस काट लिया जाएगा।
इन परिस्थितियों में भी है पैन कार्ड आवश्यक
=> दो पहिया के अलावा किसी अन्य वाहन की खरीद-बिक्री
=> किसी होटल या रेस्तरां में एक बार में 25 हजार रुपए से अधिक की अदायगी
=> शेयरों की खरीदारी के लिए किसी कंपनी को 50 हजार रुपए या इससे अधिक की अदायगी
=> बुलियन या ज्वलैरी की खरीदारी के लिए पांच लाख रुपए से अधिक की अदायगी     
=> पांच लाख रुपए या इससे अधिक कीमत की अचल संपत्ति की खरीद-बिक्री 
=> बैंक में 50 हजार रुपए से अधिक जमा
=> विदेश यात्रा के संबंध में 25 हजार रुपए से अधिक की अदायगी
=> बॉन्ड खरीदने के लिए आरबीआई को 50 हजार रुपए या इससे अधिक की अदायगी
=> बॉन्ड या डिबेंचर खरीदने के लिए किसी कंपनी या संस्था को 50 हजार रुपए या इससे अधिक की अदायगी
=> म्यूचुअल फंड की खरीदारी

क्या करें जब पैन कार्ड गुम हो जाए
 
पैन कार्ड आज किसी भी वित्तीय लेन-देन का अहम हिस्सा है। इसके अलावा यह किसी व्यक्ति के पहचान पत्र के तौर पर भी काम करता है। ऐसे में यदि किसी का पैन कार्ड गायब हो जाए, तो उसका परेशान होना लाजमी है। लेकिन उसे परेशान होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है, क्योंकि पैन कार्ड फिर से बनवाना काफी आसान है।
 
स्टेप वन
 
इनकम टैक्स पैन सर्विसेज यूनिट की वेबसाइट पर जाएं। यहां आपको कई विकल्प दिखाई देंगे। इनमें से आप ‘रीप्रिंट ऑफ पैन कॉर्ड’ का विकल्प अपनाना चाहिए। यह उन लोगों के लिए होता है जिन्हें पहले से परमानेंट एकाउंट नंबर (पैन) एलॉट किया जा चुका है, लेकिन उन्हें फिर से पैन कार्ड की जरूरत होती है। इस विकल्प को अपनाने के बाद उस आवेदक को एक नया पैन कार्ड जारी किया जाता है, जिस पर वही नंबर होता है।
स्टेप टू
 
आपको इस फॉर्म के सभी कॉलम भरने होंगे, लेकिन बायें मार्जिन के बॉक्स में किसी पर भी सही का निशान नहीं लगाना है। उसके बाद आपको 105 रुपए का पेमेंट करना होगा। आप चाहें तो क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, नेट बैंकिंग, डिमांड ड्राफ्ट या चेक के जरिए यह भुगतान कर सकते हैं। यह सारी प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद आप जब यह फॉर्म जमा करेंगे, तो आपके सामने एकनॉलेजमेंट रिसीट आएगा।
 
स्टेप थ्री
 
आप इस रिसीट का प्रिंट निकालें। इस पर 2.5 सेमी गुणे 3.5 सेमी आकार का रंगीन फोटोग्राफ चिपकाएं। अपने हस्ताक्षर करें। अगर आप डिमांड ड्राफ्ट या चेक के जरिए भुगतान किया है, तो उसकी प्रति साथ में लगाएं। फिर इसे आईडी प्रूफ, एड्रेस प्रूफ और डेट ऑफ बर्थ के प्रूफ के साथ एनएसडीएल के पुणे स्थित कार्यालय में भेज देना चाहिए।

Sunday, September 21, 2014

सूचना का अधिकार चाहिए, तो कारण बताना होगा

सूचना के अधिकार के तहत काम में पारदर्शिता लाने के अधिनियम के मद्देनजर मद्रास हाई कोर्ट ने कहा है कि आरटीआई फाइल करते समय सूचना मांगने पर इसका कारण भी बताना होगा। साथ ही, अदालत ने प्रमुख मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट के खिलाफ शिकायत पर रजिस्ट्रार ऑफिस को फाइल नोटिंग का खुलासा करने से छूट दे दी है। हाई कोर्ट के इस फैसले से आरटीआई कानून के तहत सूचना हासिल करने के अधिकार पर दूरगामी प्रभाव पड़ने के आसार हैं। इसकी आलोचना कानून के विशेषज्ञों ने भी की है।

'मकसद कानून संगत होना चाहिए'
जस्टिस एन. पॉल वसंतकुमार और के. रविचंद्रबाबू की खंडपीठ ने कहा कि आवेदक को सूचना मांगने का उद्देश्य जरूर बताना चाहिए। उसे यह भी पुष्टि करनी चाहिए कि उसका उद्देश्य कानूनसंगत है। पीठ ने कहा कि अगर सूचना किसी ऐसे व्यक्ति को दी जाती है, जिसके पास इसे मांगने के पीछे कोई वजह नहीं है, तो इस तरह सूचनाओं के पर्चे बांटने से किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो सकती। विधायिका ने जब आरटीआई कानून पारित किया था तो उसमें विशेष तौर पर धारा 6(2) शामिल की गई थी। इस धारा के अनुसार सूचना के लिए आवेदन देने पर व्यक्ति को इसके लिए कोई भी वजह देने की जरूरत नहीं होगी। मद्रास हाई कोर्ट के आदेश में सूचना के अधिकार कानून की धारा 6(2) का जिक्र नहीं है।




'विधायिका के खिलाफ नहीं'
हाईकोर्ट ने कहा कि अदालत का यह फैसला विधायिका के खिलाफ नहीं है, लेकिन कानून का मकसद पूरा होना चाहिए। अधिनियम का उद्देश्य सार्वजनिक प्राधिकरण की पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ प्रभावी संचालन सुनिश्चित करना है।

आदेश RTI की मूल भावना के खिलाफ : प्रशांत भूषण
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने आदेश को 'अवैध' बताते हुए कहा है कि यह कानून की 'मूल भावना' के खिलाफ है। प्रशांत भूषण ने कहा कि यह हाई कोर्ट का सेल्फ सर्विंग ऑर्डर है। यह हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेशों के अनुरूप नहीं है। इससे अदालत की प्रशासनिक पारदर्शिता में रुकावट पड़ती है। आरटीआई के कार्यकर्ता सी. जे. करीरा ने कहा कि यह फैसला आरटीआई कानून के लिए गंभीर झटका है। यह स्पष्ट रूप से कुछ किए बिना धारा 6(2) को निष्फल करने की कोशिश है। प्रसिद्ध आरटीआई विशेषज्ञ शेखर सिंह ने भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सूचना के अधिकार को मूल अधिकार के तौर पर परिभाषित किया है। इसका इस्तेमाल करने की किसी को कोई वजह बताने की जरूरत नहीं है। लेकिन इस आदेश से हाई कोर्ट ने शीर्ष अदालत के पहले के आदेश को उलट कर रख दिया है।

जिस समय उन्होंने कहा कि सूचना मांगने वाले व्यक्ति को इसकी वजहें देनी होंगी, वहीं आवेदक के मौलिक अधिकार का हनन हो गया। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव के कार्यक्रम संयोजक वेंकटेश नायक के अनुसार 'सूचना का अधिकार मौलिक अधिकार है। यह भारत में जन्मे हर नागरिक को प्राप्त है। आपको अपने मौलिक अधिकारों के इस्तेमाल के लिए वजह बताने की जरूरत नहीं है। सूचना के अधिकार को अनुच्छेद 19 (1) (ए)में प्रदत्त भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अनुच्छेद 21 में वर्णित जीवन के अधिकार के तहत सुप्रीम कोर्ट से मान्यता प्राप्त है। उन्होंने कहा कि जब कोई कहे कि एक नागरिक को यह साबित करने की जरूरत है कि वह कोई सूचना विशेष किसलिए चाहता है, जबकि उस सूचना को सार्वजनिक प्राधिकरण अपनी मर्जी से सार्वजनिक कर सकता है तो यह 'मौजूदा न्यायशास्त्र का मजाक' और 'एक बडा आश्चर्य' है। 


 courtesy-  navbharattimes.indiatimes.com 

Saturday, September 20, 2014

अब आपके साथ नहीं होगी धोखाधड़ी!

अब आपके बैंक में जमा पैसे से हुई छेड़छाड़ या बैंकिंग या वित्तीय धोखाधड़ी के मामले मेें न्याय मिलने में हो सकता है कि देरी न हो। क्योंकि खबर है कि सीवीसी ने एक सलाहकार बोर्ड का गठन किया है। जो बैंकों या वित्तीय धोखाधड़ी से जुड़े मामलों की जांच करेगा। साथ ही सीबीआई जैसी संस्थओं की मदद भी करेगा। जिससे ऐसे मामलों में जल्द ही नतीजे आ जाएं और आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया जाए।

बताया जा रहा है कि यह सलाहकार बोर्ड सीबीआई के एक सांगठनिक ढांचे का हिस्स होगा। रिजर्व बैंक इसके लिए आश्वश्यक धन के अलावा जरूरी जांच व सेवाएं उपलब्ध कराएगा। इस बोर्ड के अध्यक्ष पूर्व सतर्कता आयुक्त रंजना कुमार होंगे। इसका कार्यालय मुंबई में स्थित होगा। बोर्ड के सदस्यों में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के पूर्व सचिव ब्रह्म दत्त, राष्ट्रीय मानावाधिकार आयोग के पूर्व मनानिदेशक (जांच) सुनील कृष्ण और देना बैंक के पूर्व चेयरमैन डीएल रावल शामिल होंगे।

courtesy- hindi.goodreturns.in

सतर्क हो जाएं आपका पीएफ खाता लूट न ले जाए कोई

क्या आप पीएफ खातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। तो खबरदार। सावधान। आपने पिछली कम्पनी की नौकरी छोड़ने के बाद पीएफ खाते से पैसा नहीं निकाला है तो अपना पीएफ खाते की जानकारी और पैसा जल्द से जल्द निकाल लें। नहीं ऐसी सूचनाएं हैं कि भारतीय पीएप खातों पर शातिरों की नजर है। जो खातों से बड़ी रकम उड़ाने की फिराक में हैं।


बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट की माने तो धोखेबाजों ने फर्जी निकासी दावों के जरिये 2 करोड़ से अधिक पीएफ खातों की रकम पर हाथ साफ कर लिया है। इनमें से ज्यादातर खातों में काफी कम बैलेंस है। मुख्य तौर पर ऐसे खातों को निशाना बनाया गया जो बेकार या निष्क्रिय पड़े हैं।

जानकारों का कहना है कि यदि अपने पीएफ खाते में कुछ भी गड़बड़ी के संकेत देखे तो इसकी जानकारी इम्पलॉयी प्रोवीडेंट फंड ऑर्गनाइजेशन (ईपीएफओ) में जरूर दें। जिससे आपको अपने खाते की सुरक्षा के बारे में पता लग पाएगा। सूचना का अधिकार का करें उपयोग यदि ईपीएफओ आपको अपने रिकॉर्ड जांचने की अनुमति नहीं देता है तो आप सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत जानकारी हासिल कर सकते हैं। क्योंकि यह जानकारी प्राप्त करना सूचना के अधिकार के तहत आती है। यहां भी मदद नहीं मिलती है तो आप श्रम विभाग या श्रम मंत्रालय से मदद ले सकते हैं।

courtesy- hindi.goodreturns.in

बच्चे के नाम PPF अकाउंट तो टैक्स में भी छूट, कैसे हो सकता है जानिए

क्या आपको पता है कि आप पीपीएफ आकाउंट अपने बच्चे के नाम से खोल सकते हैं। जिससे आपकी सेविंग की संभावनाएं तो बढ़ेंगी ही साथ ही आपको टैक्स में भी काफी छूट मिल सकती है। यह सेविंग लॉंग टर्म के लिए हो सकती है। यह अकाउंट खुलवाने के बाद इसको बच्चों के अभिभावक ऑपरेट करते हैं। जिससे कोई परेशानी की भी बात नहीं होती।

कौन और कैसे खोलें अकाउंट अभिभावक के रूप में नाबालिग बच्चे नाम से पीपीएफ अकाउंट खोल सकते हैं। नाबालिग बच्चे के नाम पर माता, पिता या कोई गार्जियन अकाउंट खोल सकता है। अकाउंट खुलवाने के लिए पासपोर्ट साइज फोटो के साथ बच्चे की उम्र का सर्टिफिकेट देने होता है। इसके अलावा स्कूल सर्टिफिकेट भी जमा किया जा सकता है। आपको बता दें कि इस तरह के अकाउंट मेें हर साल एक लाख रुपए तक जमा किए जा सकते हैं।

रास्ते में खो जाए सामान तो मैरीन कार्गो पॉलिसी देगी बीमा कवर


नई दिल्ली। न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी की मैरीन कार्गो पॉलिसी के तहत समुद्र, वायु मार्ग, सड़क और रेल मार्ग के जरिए ढोए जा रहे सामान के खोने या डैमेज होने की स्थिति में बीमा कवर दिया जाता है। इसके तहत कारोबारियों के लिए टेलर मेड पॉलिसीज (जरूरत के हिसाब से तैयार) उपलब्ध कराई जाती हैं। इसमें इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि कारोबारी को किस तरह के कवरेज की जरूरत है। इसमें कारोबारी चाहें तो उन्हें केवल आग से जुड़े जोखिम को कवर करने वाली पॉलिसी दी जा सकती है या फिर वे चाहें तो सभी तरह के जोखिम को कवर करने वाली पॉलिसी भी उपलब्ध कराई जा सकती है। मैरीन कार्गो पॉलिसी के तहत सामानों के ट्रांसपोर्टेशन को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है- इनलैंड ट्रांसपोर्ट, इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट।
पॉलिसी के प्रकार
स्पेसिफिक वॉएज पॉलिसी
इसके तहत एक बार सामान ढोने के लिए खास पॉलिसी जारी की जाती है। जैसे ही यात्रा के बाद सामान अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच जाता है, यह बीमा कवर समाप्त हो जाता है।
ओपन पॉलिसी
यह एनुअल कार्गो इंश्योरेंस कॉन्ट्रैक्ट होता है जिसमें एक संख्या तक  सामानों के डिस्पैच को कवर किया जाता है। इसके लिए पहले से ही एक राशि तय हो जाती है। उसके बाद उतने डिस्पैच कवर किए जाते हैं, जब तक वह राशि समाप्त न हो जाए। यह पॉलिसी लेने से पॉलिसी होल्डर को बार-बार बीमा कराने के झंझट से मुक्ति मिलती है। यह पॉलिसी देश में कहीं से भी कहीं को भेजे जाने वाले इनकमिंग और आउटगोइंग कन्साइनमेंट्स को कवर करती है।
ओपन कवर
ओपन कवर वह समझौता होता है जिसके तहत एक तय अवधि के लिए बीमा कंपनी उस बीमा कराने वाले व्यक्ति के सभी शिपमेंट का बीमा करती है। यह अवधि आम तौर पर 12 महीने होती है। लगातार एक्सपोर्ट/इम्पोर्ट करने वाले कारोबारियों के लिए यह काफी मुफीद है।
इसके अलावा मैरीन कार्गो पॉलिसी के तहत एनुअल टर्नओवर पॉलिसी और एनुअल पॉलिसी भी दी जाती है।
कैसे करें क्लेम
  • घाटा कम करने के लिए तुरंत जरूरी उपाय करें।
  • बीमा कंपनी की नजदीकी शाखा या क्लेम सेटल करने वाले एजेंट को इसकी सूचना दें।
  • शिप या पोर्ट पर सामान के डैमेज होने की स्थिति में ज्वाइंट शिप सर्वे या पोर्ट सर्वे की व्यवस्था करें।
  • तय अवधि के भीतर पैसों का दावा करें।
courtesy- bhaskar.com 

Friday, September 19, 2014

अगर नहीं मिल रहा है बीमा कंपनी से क्लेम, तो न हों परेशान, ये है उपाय

नई दिल्ली। नोएडा में रहने वाले सुरेश का मोबाइल फोन 19 अगस्त को उनके घर से चोरी हो गया। इसकी एफआईआर उन्होंने अपने संबंधित थाने में करा दी। चूंकि मोबाइल खरीदते समय मोबाइल विक्रेता ने पिक-मी से उसे इंश्योर कराने की सलाह दी थी, ऐसे में मोबाइल फोन के स्टोर से ही इसे खरीदते समय उन्होंने इंश्योर भी करा लिया था। सुरेश का कहना है कि गलत कारण बता कर कंपनी ने उनका क्लेम रिजेक्ट कर दिया है।
 
बीमा कंपनी के ग्रीवांस ऑफिसर से करें शिकायत
 
ऐसी घटनाएं नई नहीं हैं। कई बार बीमा कंपनियां या इनके ब्रोकर/कॉरपोरेट एजेंट किसी क्लेम को पूरा करने में टालमटोल करते हैं। जहां पॉलिसी होल्डर की शिकायत के पीछे अपनी वजहें होती हैं, वहीं बीमा कंपनियां भी क्लेम खारिज करने के पीछे अपने कारण बताती हैं।
 
कारण चाहे जो भी हो, एक बीमाधारक के रूप में अगर आप किसी बीमा कंपनी से नाखुश हैं, तो आप उसके ग्रीवांस ऑफिसर से संपर्क कर सकते हैं। आप अपनी शिकायत लिखित में दें और इसके साथ जरूरी दस्तावेज भी दें। आप अपनी शिकायत दर्ज कराने की एकनॉलेजमेंट लिखित में लें।
 
 
 
अगर यहां न बने बात, तो इरडा से करें शिकायत
 
कायदन बीमा कंपनी को शिकायत दर्ज करने के 15 दिनों के भीतर इसका निबटारा कर देना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता या फिर आप कंपनी की ओर से किए गए निबटारे से असंतुष्ट हैं, तो बीमा नियामक इरडा के कंज्यूमर एफेयर्स डिपार्टमेंट के ग्रीवांस रिड्रेसल सेल से संपर्क करें। इसके लिए टॉल फ्री नंबर 155255 या फिर 1800 4254 732 पर संपर्क करें। आप इन्हें complaints@irda.gov.in पर ईमेल भी भेज सकते हैं।
 
इसके अलावा आप इंटिग्रेटेड ग्रीवांस मैनेजमेंट सिस्टम का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए  www.igms.irda.gov.in पर रजिस्टर करें और अपनी शिकायत पर हो रही कार्रवाई को मॉनिटर करें।
 
आप इस लिंक पर क्लिक कर कम्प्लेन्ट रजिस्ट्रेशन फॉर्म डाउनलोड कर सकते हैं-
 
इस फॉर्म को भर कर आप इरडा को अपनी शिकायत साधारण डाक या कुरियर से इस पते पर भेज सकते हैं- 
कंज्यूमर एफेयर्स डिपार्टमेंट
इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी
3-5-817/818, यूनाइटेड इंडिया टावर्स, नाइन्थ फ्लोर
हैदरगुडा, बशीरबाग
हैदराबाद- 500029
आप इस नंबर पर फैक्स भी कर सकते हैं- 040-66789768 

courtesy- bhaskar.com

Thursday, September 18, 2014

शॉपकीपर्स पॉलिसी- कर्मचारी ने की धोखाधड़ी, तो बीमा कंपनी भरेगी हर्जाना

नई दिल्ली। आप कोई भी कारोबार करते हैं, तो उसमें नुकसान होने का खतरा हमेशा बना रहता है। जनरल इंश्योरेंस सेक्टर की कई कंपनियां छोटे दुकानदारों के सामने आने वाले कई जोखिमों को कवर करती हैं। न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी की 'शॉपकीपर्स पॉलिसी' खास तौर पर छोटे दुकानदारों के लिए डिजाइन की गई है। यह एकमात्र ऐसी पॉलिसी है जिसमें दुकानदारों की कई बीमा जरूरतों को एक साथ पूरा किया जाता है। इस पॉलिसी में दुकानदार के किसी वेतनभोगी कर्मचारी की धोखाधड़ी की वजह से हुए नुकसान को भी बीमा कंपनी कवर देती है। इसके अलावा इस पॉलिसी में आग और अन्य आपदाओं की वजह से शॉप बिल्डिंग और उसमें रखे हुए सामानों के नुकसान का बीमा कवर दिया जाता है।

क्या-क्या होता है कवर

  •     दुकानदार के किसी वेतनभोगी कर्मचारी की धोखाधड़ी की वजह से हुआ नुकसान
  •     विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप (अर्थक्वेक), भूस्खलन (लैंडस्लाइड), आग लगना, बिजली गिरना, बाढ़, आंधी, तूफान, चक्रवात आदि की वजह से दुकान और उसमें रखे सामान को हुआ नुकसान
  •  दंगे, हड़ताल, आतंकवादी गतिविधियों, वाटर टैंक या पाइप का ओवरफ्लो के कारण दुकान और उसमें रखे सामान का नुकसान
  •     ऊपर लिखी घटनाओं की वजह से दुकान के डैमेज के कारण कारोबार में बाधा आने से हुआ घाटा 
  •     चोरी और सेंधमारी की वजह से दुकान के सामान को हुआ नुकसान
  •     चोरी और सेंधमारी के कारण कैशियर के काउंटर से गायब पैसे
  •     लॉक सेफ में रखी पूंजी और कीमती सामान
  •     किसी दुर्घटना की वजह से दुकान में लगी फिक्स्ड प्लेट ग्लास को हुआ नुकसान
  •     किसी दुर्घटना या प्राकृतिक आपदा की वजह से नियोन साइन या ग्लो साइन को हुआ नुकसान
  •     कारोबारी यात्रा के दौरान गायब हुआ बैगेज
  •     दुकानदार और उसके पत्नी/बच्चों का पर्सनल एक्सिडेंट

कौन ले सकता है यह पॉलिसी

यह पॉलिसी वे छोटे दुकानदार ले सकते हैं जिनकी दुकान की बिल्डिंग और सामान की कुल कीमत 10 लाख रुपए से कम हो। अगर इन दोनों की कुल कीमत 10 लाख रुपए से अधिक है, तो वे यह पॉलिसी नहीं ले सकते।

शॉप्स एंड एस्टिबलेशमेंट एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन करा लेने भर से कोई दुकान यह पॉलिसी लेने के योग्य नहीं हो जाती। रेस्तरां, चाय की दुकान, कॉफी शॉप यह पॉलिसी नहीं ले सकते।

कैसे करें क्लेम
  •     कोई दुर्घटना होने या आपदा आने की स्थिति नुकसान कम करने के उपाय करें।
  •     आग लगने की स्थिति में तुरंत फायर ब्रिगेड को सूचित करें।
  •     चोरी, सेंधमारी होने की स्थिति में तुरंत पुलिस को सूचित करें। साथ ही उन्हें उन सामानों की सूची     और उनकी कीमत की भी जानकारी उन्हें दें।
  •     बीमा कंपनी को फोन या फैक्स के जरिए या लिखित रूप से सूचना दें। कंपनी का क्लेम फॉर्म भरें।
  •     बीमा कंपनी की ओर से नियुक्त किए गए सर्वएर के साथ पूरा सहयोग करें। अपने घाटे को साबित करने के लिए जरूरी कागजात उपलब्ध कराएं। 
courtesy- bhaskar.com

सिर्फ 4000 रुपए सालाना में ले सकते हैं 50 लाख का बीमा

नई दिल्ली। वैसे तो बाजार में बीमा योजनाओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन अक्सर यह देखा गया है कि लोगों को उनकी जरूरत के उपयुक्त बीमा योजना नहीं मिल पाती। कम जानकारी या एजेंटों की गलत सलाह की वजह से लोग गलत पॉलिसी ले लेते हैं। शुद्ध बीमा लेने के इच्छुक लोगों को दरअसल अपने लिए टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी लेनी चाहिए। एक ओर यह इनडोमेंट पॉलिसी या मनी बैक पॉलिसी के मुकाबले काफी सस्ती होती है, दूसरी ओर इसे खरीद कर आप कई गलतियां करने से भी बच जाते हैं।

काफी सस्ता है ऑनलाइन टर्म इंश्योरेंस
टर्म इंश्योरेंस खरीदने के दो तरीके हैं- ऑफलाइन और ऑनलाइन। इन दोनों की तुलना करें, तो पता चलता है कि कि ऑफलाइन टर्म इंश्योरेंस के मुकाबले ऑनलाइन टर्म इंश्योरेंस काफी सस्ता होता है। कई मामलों में तो यह 50-60 फीसदी तक सस्ता होता है। इसका मतलब यह हुआ कि आप कम राशि में ही अधिक राशि का बीमा खरीद सकते हैं।

अगर तीस साल के ऐसे पुरुष को, जो टोबैको का इस्तेमाल नहीं करता, 50 लाख रुपए का टर्म इंश्योरेंस लेना है, तो उसे कई कंपनियां 4,029 रुपए से ले कर 4,776 रुपए तक में यह उपलब्ध करा रही हैं। रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस से 50 लाख रुपए का टर्म इंश्योरेंस लेने के लिए आपको प्रीमियम के तौर पर महज 4,029 रुपए सालाना खर्च करने होंगे। भारती एक्सा की ई-प्रोटेक्ट पॉलिसी लेने पर आपको हर साल 4,607 रुपए का प्रीमियम चुकाना होगा।

एगॉन रेलिगेयर की आई-टर्म पॉलिसी के लिए इसी उम्र के व्यक्ति को सालाना 4,607 रुपए देने होंगे। अगर कोई 30 साल का पुरुष 50 लाख रुपए सम इंश्योर्ड के साथ अवीवा लाइफ की ई-लाइफ पॉलिसी लेना चाहता है, तो उसे बतौर प्रीमियम हर साल 4,635 रुपए चुकाने होंगे।


गलतियों की संभावना खत्म

ऑनलाइन टर्म इंश्योरेंस सस्ता तो है भी, फायदेमंद भी है। इसकी वजह यह है कि जब आप ऑनलाइन टर्म इंश्योरेंस खरीदते हैं तो आप अपने बारे में सारी सूचनाएं पक्की जानकारी के आधार पर भरते हैं, न कि अंदाजे से। दूसरी ओर अगर आप जब एजेंट के माध्यम से पॉलिसी खरीदते हैं, तो उसकी गलती से या उसकी लापरवाही की वजह से गलत सूचनाएं भर जाती हैं, जिसका आपको बाद में नुकसान उठाना पड़ता है।


कई विकल्प हैं उपलब्ध
 जब आप टर्म इंश्योरेंस की ऑनलाइन खरीदारी करते हैं तो आपके सामने कई विकल्प पेश किए जाते हैं। उनमें से आप अपनी जरूरत के मुताबिक बेहतर विकल्प चुन सकते हैं। आप चाहें तो रिटर्न ऑफ प्रीमियम राइडर ले सकते हैं या फिर इनकम रिप्लेसमेंट का विकल्प भी चुन सकते हैं। यदि आप एजेंट के जरिए खरीदारी करेंगे, तो शायद आपको उस प्लान के उन विकल्पों का पता ही न चले।
 courtesy-  courtesy- bhaskar.com

सावधान ! एम्स में 'स्टाफ' बनकर ठगते हैं दलाल

नई दिल्ली-एम्स में स्टाफ के वेश में आपको दलाल मिल सकते हैं। ये दलाल मास्क पहने रहते हैं। इस वजह से सीसीटीवी कैमरे में भी इनकी पहचान नहीं हो पा रही है। अगर आप भी एम्स जा रहे हैं तो जल्द इलाज या जल्द जांच कराने के नाम पर दूसरे से मदद नहीं लें, वरना आप भी ऐसे ठग का शिकार हो सकते हैं। न्यूरो पेशंट निर्मल खुराना से दलाल ने 5500 रुपये ठग लिए।

निर्मल खुराना का न्यूरो विभाग और ऑर्थोपेडिक विभाग में इलाज चल रहा है। उनके पति अनिल कुमार ने बताया कि 6 सितंबर को कार्ड बनाने के लिए हम न्यूरो सेंटर पहुंचे थे। कार्ड बन गया था। पेशंट को दिखाने के बाद डॉक्टर ने दवा भी लिख दी थी। हम डॉक्टर से जानने की कोशिश कर रहे थे कि दवा कैसे खानी है। इसी बीच वहां गार्ड पहुंचा और उसने हमें बाहर कर दिया। बाहर निकलते ही एक आदमी मिला जो सफेद वर्दी और मुंह पर मास्क पहना था। उसने मेरे हाथ से ओपीडी कार्ड और कागज लेते हुए कहा कि इन्हें तो कैंसर है। जल्द इलाज कराना होगा। आप जल्दी एमआरआई करवाओ, तभी इलाज होगा।


अनिल का कहना है कि इसके बाद वह स्टाफ उन्हें सेकेंड फ्लोर पर ले गया और वहां पर फॉर्म भरवाया। फिर उसने कहा कि जल्दी से पैसे दे दो। मैं पैसे जमा करा दूंगा, तब जल्दी हो जाएगा। उसने फॉर्म भरा, स्टाम्प लगाने के लिए ओपीडी कार्ड लेकर भी गया। इसके बाद वह अंदर गया। फिर वहां से कहां चला गया, पता ही नहीं चला। जब काफी देर तक वह बाहर नहीं आया तो उन्होंने सिक्युरिटी गार्ड से पूछा तो गार्ड ने कहा कि तुम लुट गए।

अनिल ने इसके बाद वहां हंगामा किया और शोर मचाया तो सभी गार्ड पहुंच गए। जब सीसीटीवी कैमरे में देखा तो पता चला कि वह पैसे लेकर फरार हो गया है, लेकिन चेहरे पर मास्क पहने होने की वजह से उसकी पहचान नहीं हो पाई। अनिल ने एम्स प्रशासन के पास लिखित शिकायत की। उन्होंने एम्स की चौकी में भी इसकी शिकायत की। एम्स प्रशासन का कहना है कि इस मामले की जांच की जा रही है। पुलिस को हरसंभव मदद दी जा रही है। एम्स में इलाज और जांच के लिए एक डेट निश्चित होता है। कोई भी पैसा लेकर इस डेट को चेंज नहीं करा सकता है। इसलिए कोई ऐसे दलालों के चक्कर में नहीं पड़े और कोई ऐसा कहता है तो उसे पकड़वाने में मदद करे।

पिछले दिनों भी एम्स में एक पेशंट से जल्द जांच कराने के नाम पर पैसे मांगे गए थे। सूत्रों का कहना है कि आए दिन लोग यहां पर ठग के शिकार हो रहे हैं, लेकिन इन दलालों को पकड़ने के लिए एम्स के पास कोई प्लान नहीं है।
courtesy-  navbharattimes.indiatimes.com 

एसबीआई में 6-7 महीने की एफडी पर मिलेगा ज्यादा ब्याज

मुंबई। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने एक करोड़ रुपए से कम राशि के डिपॉजिट्स पर दिए जाने वाले ब्याज की दरों में बदलाव किया है। बैंक ने चुनिंदा अवधि के लिए ब्याज दर में बढ़ोत्तरी की है। ऐसे में निवेशक इन ब्याज दरों का फायदा उठा सकते हैं। नई दरें 18 सितंबर से लागू होंगी।बढ़े हुए इंटरेस्ट रेट का फायदा छोटी अवधि में एफडी कराने वाले छोटे कारोबारी भी उठा सकते हैं।

किस अवधि के लिए बढ़ी हैं ब्याज दर
जहां तक 180 दिनों से लेकर 210 दिनों तक के डिपॉजिट का सवाल है, बैंक ने इस पर दी जाने वाली ब्याज दर को बढ़ा कर 7.25 फीसदी कर दिया है। एसबीआई अभी इस अवधि के टर्म डिपॉजिट पर सात फीसदी की दर से ब्याज दे रहा है। 

किस अवधि के लिए घटी है ब्याज दर
एक साल से तीन साल तक की अवधि के टर्म डिपॉजिट पर दिए जाने वाले ब्याज दर को बैंक ने घटाया है। अब इस पर 8.75 फीसदी की दर से ब्याज मिलेगा। इससे पहले बैंक इस पर 9 फीसदी की दर से ब्याज दे रहा था।


किस अवधि के लिए नहीं बदली ब्याज दर
 बैंक सात से ले कर 179 दिनों तक के डिपॉजिट पर सात फीसदी सालाना की दर से ब्याज देगा। यानि इस अवधि की ब्याज दरों में बैंक ने कोई बदलाव नहीं किया है। इसके अलावा बैंक ने 211 दिनों से अधिक लेकिन एक साल से कम अवधि के टर्म डिपॉजिट पर ब्याज दर में कोई बदलाव नहीं किया है और इस पर पहले की ही तरह 7.5 फीसदी ब्याज ही मिलेगा। तीन साल से पांच साल तक की अवधि की जमा पर एसबीआई ने ब्याज दर में कोई बदलाव नहीं किया है। इस अवधि की टर्म डिपॉजिट पर पहले की ही तरह 8.75 फीसदी की दर से ब्याज मिलता रहेगा। पांच साल और इससे अधिक अवधि के टर्म डिपॉजिट पर भी पहले की ही तरह 8.5 फीसदी की ही दर से ब्याज मिलेगा। courtesy- bhaskar.com

कर्मचारियों को अब ईपीएफओ में देना होगा बैंक अकाउंट डिटेल्स


नई दिल्ली। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने कर्मचारियों का बैंक एकाउंट की जानकारी देना नियोक्ताओं के लिए अनिवार्य कर दिया है। ईपीएफओ के अनुसार सबको यूनिवर्सल एकाउंट नंबर आवंटित हों, यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि कर्मचारियों के बैंक एकाउंट नंबर और उनकी बैंक शाखा का आईएफएससी कोड जरूर बताया जाए। फंड कमिश्नर के के जालान ने कहा कि इस डायरेक्टिव से ईपीएफओ को सभी सदस्यों का बैंक एकाउंट विवरण हासिल करने में मदद मिलेगी, जो यूएएन का आवंटन करने के लिए आवश्यक है।
 
15 अक्टूबर तक का है वक्त 
 
ईपीएफओ ने गुरुवार को जारी एक प्रेस रिलीज में कहा है कि कंपनियों को 15 अक्टूबर तक अपने सभी मौजूदा कर्मचारियों के विवरण उसके पास जमा कर देने हैं। अपने पूर्व कर्मचारियों का विवरण ईपीएफओ के पास जमा करने के लिए कंपनियों को 31 अक्टूबर तक का समय दिया गया है। इसके बाद ईपीएफओ से जुड़ने वाले हर सदस्य का विवरण दिया जाना जरूरी होगा। ध्यान रहे कि ईपीएफओ के पास 1.8 करोड़ कर्मचारियों के बैंक खातों का विवरण, 87 लाख कर्मचारियों का पैन विवरण और 28 लाख कर्मचारियों का आधार नंबर है। 
 
क्या होंगे इसके फायदे
 अभी जब लोग नौकरी बदलते हैं तो आम तौर पर वे अपने पुराने पीएफ खाते को बंद कर देते हैं और नया पीएफ खाता खोल लेते हैं। यूनिवर्सल एकाउंट नंबर मिल जाने के बाद लोगों को नौकरी बदलने के बाद पुराना खाता बंद करने और नया खाता खोलने के झंझट से मुक्ति मिल जाएगी। इससे संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को नौकरी बदलने पर पीएफ ट्रांसफर करने के लिये आवेदन देने की जरूरत भी नहीं होगी।

यह नंबर सदस्यों के पूरे करियर के दौरान पोर्टेबल होगा और देश में कहीं भी इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा। नई जगह नौकरी आरंभ करने के बाद उन्हें अपना यूनिवर्सल एकाउंट नंबर नए नियोक्ता को बता देना होगा और नए नियोक्ता की ओर से उस खाते में पीएफ योगदान ट्रांसफर किया जाने लगेगा। यूएएन के जरिए खाताधारक अपडेटेड खाता देख सकेंगे और उसे डाउनलोड भी कर सकेंगे। courtesy- bhaskar.com

Wednesday, September 17, 2014

भूपेन्द्रा गैस एजेंसी का काला कारनामा

सिरसा। फर्जी कैनेक्शन जारी कर कालाधन जमा करने वाले भूपेन्द्र गैस एजेंसी के संचालक भूपेन्द्र गुप्ता के काले कारनामों का कुछ उल्लेख यहां करना चाहते हैं। एजेंसी में हो रही घपले बाजी के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने वाले और भारत पैट्रोलियम हिसार डिपों में मौजूद अधिकारियों को गड़बड़ी संबंधित दस्तावेज मुहैया करवाने वाले सिरसा की अग्रसैन कालोनी के निवासी सतीश कुमार गोयल पिछले लंबे समय से इंसाफ की बाट जोह रहे हैं। बता दें कि शिकायतकर्ता स्वयं उक्त एजेंसी के उपभोक्ता हैं और जनवरी 2013 को उनकी कॉपी गुम हो जाने पर एजेंसी द्वारा दूसरी कॉपी जारी करने की गुहार लगाई गई। कॉपी जारी करने की बजाए एजेंसी संचालक ने जहां उनके साथ अभद्र व्यहवार किया वहीं उनके खिलाफ एफआईआर तक दर्ज करवा दी। सतीश कुमार गोयल ने बताया कि भूपेन्द्र गैस एजेंसी संचालक ने उनकी कॉपी की आड़ में आधा दर्जन सिलेंडर किसी और के नाम अवैध रूप से बेच दिए गए।

पीडि़त उपभोक्ता ने एजेंसी के खिलाफ अनेकों आरटीआई मांग रखी हैं और उसने एजेंसी संचालक पर हजारों फर्जी कैनेक्शन जारी कर रखें है जिनके माध्यम से दो नम्बर रिफिल बेचकर कालाबाजारी के माध्यम से अवैध धन कमाया जा रहा है। इन सबकी पूरे दस्तावेजों के साथ भारत पैट्रोलियम हिसार डिपों में मौजूद टीसी व सेल्ज मैनेजर को शिकायत की गई लेकिन सबसे बड़ी विडम्बना तो यह है कि कंपनी के अधिकारी एजेंसी संचालक द्वारा किए जा रहे घोटालों पर कार्रवाई करने की बजाए उल्टा शिकायतकर्ता को ही एजेंसी संचालक से समझौता करने का दबाव बनाया गया। इससे स्पष्ट होता है कि गैस एजेंसी संचालक द्वारा की जा रही कालाबाजारी में कंपनी के अधिकारी भी इस काले धंधें में शामिल हैं।

शिकायतकर्ता सतीश कुमार गोयल ने गैस एजेंसी संचालक द्वारा फर्जी ढंग से तैयार किय गए फर्जी कैनेक्शनों का पूरा बंडल जिसमें 200 से अधिक फार्म है और सभी फर्जी नाम अंकित किए गए है और उन पर न तो पूरा पता है और न ही मोबाइल नम्बर। सभी दस्तावेजों को प्रस्तुत करते हुए सतीश कुमार गोयल ने 'क्रिमनल कौन' को बताया कि इन पर फर्जी नाम और अधूरे पते भरकर भूपेन्द्रा गैस एजेेंसी का मालिक करोड़ों रूपये के घोटालों को अंजाम दे रहा है। शिकायतकर्ता ने बतया कि इस फर्जीवाड़े का खुलासा होने के बाद एजेंसी संचालक ने अधिकतर फर्जी कैनेक्शन बंद भी करवा दिए हैं।

इस मामले को शिकायतकर्ता सतीश कुमार अब मुंबई स्थित भारत पैट्रोलियम के उच्चाधिकारियों व सीबीआई सहित विजीलेंस तक पहुंचाने की तैयारी में जुटे हैं। शिकायतकर्ता सतीश कुमार का मानना है कि जिस प्रकार से सिरसा की एकमात्र भूपेन्द्रा गैस एजेंसी ने फर्जी गैस कैनेक्शनों के बल पर करोड़ों रूपये के घोटाले को अंजाम दिया है। यदि इस मामले की इमानदारी से जांच की जाए तो पूरे देश में भूचाल आ जाएगा और पिछली यूपीए सरकार में हुए बड़े-बड़े घोटालों की तरह रसोई गैस घोटाले का नाम भी शामिल हो जाएगा। इसके अतिरिक्त केन्द्र में बैठे मंत्रियों आदि की अंदरखाते हिस्सेदारी डालकर या उसकी सिफारिश से गैस एजेंसी लेने वाले अनेकों लोगों के नाम इस गौरखधंधे में उजागर हो सकते हैं।

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